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ध॒र्ता दि॒वो रज॑सस्पृ॒ष्ट ऊ॒र्ध्वो रथो॒ न वा॒युर्वसु॑भिर्नि॒युत्वा॑न्। क्ष॒पां व॒स्ता ज॑नि॒ता सूर्य॑स्य॒ विभ॑क्ता भा॒गं धि॒षणे॑व॒ वाज॑म्॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

dhartā divo rajasas pṛṣṭa ūrdhvo ratho na vāyur vasubhir niyutvān | kṣapāṁ vastā janitā sūryasya vibhaktā bhāgaṁ dhiṣaṇeva vājam ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ध॒र्ता। दि॒वः। रज॑सः। पृ॒ष्टः। ऊ॒र्ध्वः। रथः॑। न। वा॒युः। वसु॑ऽभिः। नि॒युत्वा॑न्। क्ष॒पाम्। व॒स्ता। ज॒नि॒ता। सूर्य॑स्य। विऽभ॑क्ता। भा॒गम्। धि॒षणा॑ऽइव। वाज॑म्॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:49» मन्त्र:4 | अष्टक:3» अध्याय:3» वर्ग:13» मन्त्र:4 | मण्डल:3» अनुवाक:4» मन्त्र:4


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वान् जनो ! जो (दिवः) प्रकाशस्वरूप (सूर्यस्य) सूर्य (रजसः) लोकों के समूह का (जनिता) उत्पन्न करने (धर्त्ता) धारण करनेवाला (पृष्टः) पूछने योग्य (ऊर्ध्वः) उत्तम (रथः) सुन्दर वाहनके (न) तुल्य (वसुभिः) सम्पूर्ण लोकों से (वायुः) पवन के सदृश बलवान् (क्षपाम्) रात्रि को (वस्ता) आच्छादन करनेवाला और (धिषणेव) अन्तरिक्ष और भूमि के सदृश (वाजम्) घोड़े आदि (भागम्) अंश का (विभक्ता) विभाग करने और (नियुत्वान्) नियम करनेवाला है, उसको परमात्मा के सदृश राजा मानो ॥४॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जो राजा परमेश्वर के सदृश प्रजाओं में वर्त्तमान है, उसीकी निरन्तर सेवा करो ॥४॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे विद्वांसो यो दिवः सूर्यस्य रजसश्च जनिता धर्त्ता पृष्ट ऊर्ध्वो रथो न वसुभिर्वायुरिव क्षपां वस्ता धिषणेव वाजं भागं विभक्ता नियुत्वानस्ति तं परमात्मानमिव राजानं मन्यध्वम् ॥४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (धर्त्ता) धाता (दिवः) प्रकाशमयस्य (रजसः) लोकसमूहस्य (पृष्टः) पृष्टुं योग्यः (ऊर्ध्वः) उत्कृष्टः (रथः) रमणीयं यानम् (न) इव (वायुः) पवन इव बलवान् (वसुभिः) सर्वैर्लोकैः सह (नियुत्वान्) नियमकर्त्ता नियुत्वानितीश्वरना०। निघं०२। २१। (क्षपाम्) रात्रिम् (वस्ता) आच्छादयिता (जनिता) उत्पादकः (सूर्यस्य) सवितृमण्डलस्य (विभक्ता) विभागकर्त्ता (भागम्) अंशम् (धिषणेव) द्यावापृथिव्याविव (वाजम्) अन्नादिकम् ॥४॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या यो राजा परमेश्वरवत्प्रजासु वर्त्तते तमेव सततं सेवध्वम् ॥४॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो! जो राजा परमेश्वराप्रमाणे प्रजेमध्ये असतो त्याचीच निरंतर सेवा करा. ॥ ४ ॥